परशुराम जंयती तीन मई पर विशेष

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भगवान परशुराम की जयंती अक्षय तृतीया है। आज भगवान परशुराम का अवतरण दिवस है।दुनिया के सात अमर व्यक्तियों में भगवान परशुराम की भी गणना होती है।भगवान परशुराम पर भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा सदियों से लिखा जा रहा है।सबने अपने – अपने दृष्टिकोण से भगवान परशुराम को पढ़ा, देखा और लिया।
उत्तर प्रदेश के धामपुर नगर के तो विद्वान पंडित गौरी शंकर शर्मा सुकोमल ने भगवान परशुराम के जीवन चरित्र पर पूरी परशु रामायण लिख दी। इस परशु रामायण की विशेष बात यह है कि ये गेय है। राधेश्याम कथा वाचक की रामायण की तर्ज पर लिखी ये रामायण गाई जा सकती है। गाई जाती है। गाई जा रही है।
17 फरवरी 1943 में जन्में पंडित गौरी शंकर शर्मा सुकोमल बीए, साहित्य रत्न हैं। वे मूल रूप से पत्रकार और लेखक हैं। रंगमंच और कथावाचन से जुडे गौरीशंकर शर्मा जी के मन में
आया कि भगवान परशुराम पर तथ्यात्मक रूप से कुछ नही मिलता।ये विचार आते ही उन्होंने भगवान परशुराम पर रामायण लिखने का निर्णय लिया। ये भगवान परशुराम पर मिले साहित्य के अध्ययन में लग गए।इस विषय पर उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया। तर्कना पर कसा। इस कार्य में कई साल लग गए। दिन रात लगकर जब विषय सामग्री एकत्र हुई तो प्रश्न था कि भाषा− शैली क्या हो। ये रामायण आम आदमी तक कैसे पंहुचे और लोकप्रिय हो ,गाई भी जा सके। इसके बाद इन्होंने विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया।विद्वानों से विचार किया। बताया गया कि भगवान राम पर बहुत कुछ लिखा गया।किंतु राधे श्याम कथा वाचक की रामायण ज्यादा गेय है।निर्णय हुआ कि राधेश्याम शर्मा कथा वाचक की रामायण की त्तर्ज पर इसे लिखा जाए।इस पर इन्होंने राधेश्याम शर्मा की रामायण के शिल्प को समझा। उसका मनन किया।
इसके बाद जो लिखना शुरू किया तो परशु रामायण को पूरी करके रूके। इस कार्य के लिए इन्होंने दिन −रात एक कर दिए।परशु रामायण तो तैयार हो गई किंतु इसके प्रकाशन की समस्या आई । कहीं से भी मदद न मिलने पर सुकोमल जी निराश नही हुए।उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी गृहणी के जेवर भी बेच दिए।
श्री गौरी शंकर सुकोमल जी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने सामग्री संजोने और एकत्र करने में तीन− चार साल लग गए। परशु रामायण में अपनी बात शीर्षक के अंतर्गत वह स्वीकार करते हैं कि मैं मूल रूप से कवि और साहित्यकार हूं फिर भी इसे कथावाचन के उद्देश्य से लिखने का प्रयास किया। इन्होंने अपने ग्रन्थ का आधार बनाया डा. डी आर शर्मा के शोध ग्रन्थ भगवान परशुराम को । सुकोमल जी बताते हैं कि वह गद्य में है। उन्होंने अपनी पुस्तक का कथा वाचन के हिसाब से गेय बनाया। अपनी कसौटी पर आए तर्क को शामिल किया।
कुल 12 संर्गो में विभक्त परशु रामाणय को को 224 शीर्षक में विभक्त किया गया है। यह परशु रामाणय 500 पृष्ठों में है। 17 बार क्षत्रियों के विनाश की बात पर वह कहते है कि भगवान परशुराम ने ऐसे दुष्टों का संघार किया जो आर्य विरोधी थे। इसे गलत रूप में समाज में प्रचारित किया गया।
परशु रामायण के कुछ अंश−
महर्षि जमदग्नि के वध का जब समाचार, चंहु और गया।
ऋषिगण, संबंधी, राजागण, सबके मन को झकझोर गया।
सब समझ गए, सब जान गए, इसमें कोई संदेह नहीं,
यह क्रूर कृत्य अर्जुन सुत का, इसमें कोई अंदेह नहीं।
मिल गया शोक संदेश तभी,आश्रम परशुराम लौट आए।
युवको की आर्य सेना भी, वह साथ− साथ लेते आए।−−−−
माता का ये रूदन सुन , बिलख उठे भ्रगुनाथ।
सांत्वना भरे शब्द कुछ, बोले तक मुनि नाथ।
पृथ्वी पर जिसने जन्म लिया, वह निश्चय एक दिन मरता है।
जो जलता है, वह बुझता है, जो फलता है, वह झरता है।
हे माता क्यों अज्ञान युक्त, तुम रिश्तों का दम भरती हो1
जो नही शोक करने लायक, उसका क्यों गम करती हो।
कुछ चले गए इस दुनिया से, बाकी के भी सब फानी हैं।
दोनों पर जिनको शोक नहीं,बस वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।
यह नही आत्मा नाशवान, एक अदभुत सुंदर ज्योति है।
वस्तु ये एक अनादि है, जो सबके अंदर होती है।
क्षण भंगुर है सुख−दुख सभी,जो इस शरीर पर आते हैं।
तुम सहन करो सब धीरज से,ये अपना चक्र चलाते हैं।
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लाचार हो गया भ्रगुवंशी, भ्रगुकुल का गौरव रखना है।
मदमत्त हुए हैह्यवंशी, इसका फल उनको चखना है।
अब आर्य धरा पर ये श्रत्रप, चैन नही ले पांएगे।
जो प्रजा विरोधी राजा हैं, सीधे यमलोक में जांएगे।
मैं शपथ पूर्वक कहता हूं, चुन− चुन दुष्टों को मारूंगा।
संस्थापन धर्म हेतु अब, राक्षस नरेश संहारूंगा।
पंडित गौरी शंकर शर्मा सुकोमल जी लिखी परशु रामायण का अध्ययन करने वाले विद्वानों की राय है कि ये परशु रामायण मात्र कथा काव्य नही है।ये एतिहासिक तथ्यों को विश्लेषण हैं।
अशोक मधुप

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