अमेरिका की तारीफ से भारत को सचेत रहना  होगा 

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    अमेरिका आजकल भारत की  प्रशंसा करने पर उतरा हुआ है।फुसलाने पर लगा हुआ है।  उसके इस व्यवहार से भारत के नेतृत्व को सचेत रहने की जरूरत है। फूंक− फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। आवश्यक्ता यह भी  है कि  भारत  उसके  किसी जाल में न फंस जाए।

    भारत ने रूस से  एस 400 मिजाइल डिफेंस सिस्टम लिया। अमेरिका ने 2018 में इस सौदे  होने की बात चलते ही विरोध करना शुरू कर दिया। भारत पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देनी शुरू कर दी।वह नही  चाहता था कि भारत रूस से खरीदारी करे। वह  अपना सिस्टम बेचना   चाहता था। भारत ने उसकी चेतावनी और धमकी को नजर अदांज कर यह सिस्टम खरीद लिया। अब उसके सुर बदल गए।  वह अब कह रहा है कि भारत के लिए यह जरूरी था। चीन से उसके विवाद को देखते  हुए भारत के लिए इसकी खरीद आवश्यक थी। रूस  यूक्रेन युद्ध के समय भारत को लगा कि उसे पेट्रोलियम पदार्थ  का संकट होगा।  गल्फ  देश पहले से ही कुछ नक्शेबाजी दिखा रहे थे। उन्होंने अपने तेल के रेट भी बढ़ा दिया था। ऐसे में भारत के पुराने और सच्चे मित्र रूस ने  सस्ता तेल देने की पेशकश  की। भारत ने  उसे स्वीकार कर लिया।  रूस से तेल की खरीद  बढ़ा  दी। अमेरिका  समेत नाटों देश ने इसका विरोध किया। अमेरिका  और उसके गठबंधन के देशों ने पहले ही रूस पर आर्थिक  प्रतिबंध लगा रखा था।। भारत ने इस चेतावनी और प्रतिबंध को भी नजर अंदाज कर उन्हें आईना दिखा  दिया। सच्चाई  बतादी  कि आप में से कई  देश  रूस से तेल और गैस ले रहें हैं।भारत के धमकी में  न आते देख  वे चुप हो गए। अमेरिका  को स्वीकारना पड़ा कि रूस भारत का पुराना मित्र है।  शस्त्र  आपूर्ति  पर भारत की रूस पर बडी निर्भरता है,  ऐसे में उसपर  प्रतिबंध लगना ठीक नहीं। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा  में भारत के पक्ष में एक बड़ा फैसला लेते हुए नेशनल डिफेंस अथॉराइजेशन एक्ट  में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव के जरिए भारत को काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट यानी से भारत को छूट देने की अनुशंसा की गई । हालांकि इस विधेयक को कानून की शक्ल लेना बाकी है।

    दरअस्ल अमेरिका भारत को शुरू में  धमकी में लेना चाहता था।भारत के धमकी में  न आने पर उसने  अब भारत को फुसलाना शुरू कर दिया है।  अमेरिका चाहता है कि चीन −ताइवान विवाद में भारत अप्रत्यक्ष  रूप से उनका साथ दे।    पेंटागन के पूर्व अधिकारी एलब्रिज कोल्बी ने निक्केई एशिया में कहा भी है  कि, अगर चीन और ताइवान के बीच युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हुई तो भारत , ताइवान की सीधी तौर पर मदद नहीं करेगा लेकिन यह माना जा सकता है कि भारत भी चीन के विरूद्ध लद्दाख मोर्चे को फिर से खोल सकता है।चीन से चल रहे भारी तनाव के बीच अमेरिका ने भारत की काफी तारीफ की है। अमेरिकी नौसेना के ऑपरेशनल हेड एडमिरल माइक गिल्डे ने कहा कि भारत भविष्य में चीन का मुकाबला करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन के तनाव के दौरान भारत, अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार साबित होगा।माइक गिल्डे ने वाशिंगटन में हेरिटेज फाउंडेशन के इन-पर्सन सेमिनार में ये बात कही। माइक ने कहा कि किसी भी देश से ज्यादा समय अगर उन्होंने कहीं बिताया है तो वो भारत है। ऐसा इसलिए क्योंकि आने वाले समय में भारत, अमेरिका के लिए एक रणनीतिक भागीदार साबित होगा। माइक गिल्डे अक्टूबर 2021 में पांच दिवसीय यात्रा पर भारत आए थे और इस दौरान उन्होंने भारत के नौसेना प्रमुख समेत रक्षा क्षेत्र के कई महत्वपूर्ण हस्तियों से मुलाकात की थी।

    अमेरिकी नौसेना के ऑपरेशनल हेड एडमिरल माइक गिल्डे की यह घोषणा  हमें अलग तरह का संदेश  देती है।  हमें   इससे  सचेत रहना  होगा।हालाकि चीन हमारा धोखेबाज पड़ोसी है ।  उस पर कभी   यकीन नही किया जा सकता।हम  उससे सदा सचेत हैं। दो साल पहले से लद्दाख सीमा  पर चीन के  सेना  जमावड़े के बाद से भारत पूरी तरह चौकस  है।मुकाबले के लिए  उसकी सेना  पूरी तैयारी में है किंतु  दो साल के दौरान गलवन घाटी की छोटी  मुठभेड़  के बाद से कोई घटना वहां नहीं हुई। जबकि पाकिस्तान बार्डर पर मुठभेड़  चलती रहती हैं। ये दोनों देशों की सेना  की

    समझदारी है कि आमने –सामने  होने के बाद भी  दो साल से सीमा पर शांति है।अमेरिका  जिस तरह से ताइवान विवाद में चाह रहा  है कि भारत लद्दाख  में चीन के साथ अपना  मार्चा खोले ,  इससे  हमें बचना होगा।  भारत अर्थात हमारे निर्णय देश  हित में होने   चाहिए,  किसी दूसरे देश के सुझाव पर नहीं।अमेरिका मतलब परस्त  है, कभी हमारा मजबूत मित्र  नही हो सकता। एक  चीज और युद्ध किसी समस्या का समाधान नही है।  युद्ध अंतिम विकल्प  होना होना चाहिए,  पहला नहीं। कोशिश होनी चाहिए कि जब तक हो  सके , युद्ध टाला जाए।

    अशोक मधुप