बीस दिन में 500 करोड़ का बिजनेस

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15 अगस्त बीत गया।प्रधानमंत्री का हर घर तिंरगा अभियान बड़ी  कामयाबी के साथ संपन्न हो गया। कामयाबी के साथ  संपन्न  ही नही हुआ, बल्कि  20− 25 दिन के  इस अभियान में देश  ने 500  करोड़ रूपये का  व्यवसाय किया। पर कुछ हैं  जो  प्रत्येक काम में खराबी निकालते हैं।  गलती ढ़ूंढते  है।  उनका काम ही कमी निकालना है।  व अच्छा  सोच  नही सकते। अच्छा देख नही सकते। सा ही इस अभियान के साथ  हुआ। पहले उनका कहना था कि इतने झंडे  एक साथ कैसे बनेंगे कैसे तैयार होंगेअब उनकी परेशानी है कि घरों पर फहराए झंडो का  क्या होगाउन्हें  संभाल कर कैसे   रखा जाएगा।इन्हें प्रत्येक कार्य में कमी निकालनी है, निकालेंगे।अब इन्हें कौन समझाए कि जाड़े खत्म होने पर हम जाड़ो में प्रयुक्त हुए कपड़े अगले  साल में इस्तेमाल करने के लिए क्या  संजोकर नहीं रख देते  ।  क्या गर्मी के कपड़े  जाड़े  आने पर संदूक या अटैंची में नही चले  जाते। ये तो मात्र  एक झंडा है।

सारा  विपक्ष मिलकर नरेंद्र मोदी बनना   चाहता है। वह मोदी बनना चाहता है।  मोदी को समझना  नही चाहता।  मोदी को समझे और अच्छी  तरह जाने बिना  तो  नरेंद्र मोदी नही बना    जा सकता। पिछले  आठ साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने लोगों में राष्ट्रीयता  की भावना बलवती की। देशभक्ति की भावना को मजबूत किया।उसी का परिणाम है नोटबंदी हो या  जीएसटी लागू करना,  लागू करते के समय ही कुछ शोर मचा।  उसके बाद सब  सामान्य हो गया।विपक्ष और निगेटिव सोचने  वालों ने बहुत हंगामा  काटा,  पर सब सामान्य  हो गया।अगली बार चुनाव में नोटबंदी से परेशान जनता और जीएसटी से पीड़ित व्यापारी ने नरेंद्र मोदी पर फिर विश्वास जताया।उन्हें बहुमत के साथ दूसरी बार भी  प्रधानमंत्री बनाया।   सा ही  कोराना  वैक्सीन के   तैयार होने पर हुआ। किसी ने वैक्सीन को मोदी −पानी बताया तो किसी ने उसे नुकसानदायक कहा।   देश के बड़े  गणितज्ञ कह रहे थे इतनी आबादी को  वैक्सीन कैसे  लगेगीइसमें तो बहुत साल लगेंगे। जबकि आज एक सिंतबर तक पूरे देश में दो अरब  12 करोड़ 52 लाख 83 हजार 253  वैकसीन के डोज  लग गए। कैसे इतना हो गया अब हो गया तो चुप्पी साधे हैं।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  काफी समय से लोकल फार वोकल पर जोर दे रहे हैं। उनका ध्यान  इसी पर है। तिंरगा  अभियान को हम इसी से जोड़कर देखें।  पता चलेगा कि हर घर तिरंगा अभियान से देश भर में इस बार 30 करोड़ से अधिक राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री हुई। लगभग 500 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ ।कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAT )ने कहा कि राष्ट्रभक्ति और स्व-रोजगार से जुड़े इस अभियान ने कोआपरेटिव व्यापार के लिए संभावनाएं खोल दी है। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने बताया कि देश के लोगों की तिरंगे की अभूतपूर्व मांग को पूरा करने के लिए लगभग 20 दिनों के रिकॉर्ड समय में 30 करोड़ से अधिक तिरंगे का निर्माण किया। इससे  लगभग  500 करोड़ का नया व्यवसाय हुआ। वह व्यवसाय जो  अब तक बहुत कम था।आलोचना  करने वाले इस अभियान के उज्जवल पक्ष का नही देख रहे।  ये  नहीं देख  रहे कि प्रधानमंत्री के  एक आह्वान पर एक झटके में पांच सौ करोड़ रूपये  का व्यवसाय  हो  गया।झंडा बनाने के काम में लोगों को कितना  लाभ  हुआ। कितने हाथों काकाम मिला। कितने घरों के बच्चों के खिलौने  और खरीदे गए।  इस घर−  घर झंडा अभियान से   पहले कोई  सोच भी नही सकता था कि झंडा बनाने का व्यवसाय इतना  बड़ा भी    हो सकता है।  क्या  इससे  पहले कभी  इस तरह का  आह्वान हुआ है।  पूर्व प्रधानमंत्री  लालबहादुर  शास्त्री ने पाकिस्तान संघर्ष के समय एक दिन अन्न  न खाने का  आह्वान  किया था।  इसका  इस तरह  का  असर जरूर दिखाई  दिया था।  उसके बाद नहीं।

मुझ  एक साधु का किस्सा  याद आता  है।  इसके आश्रम के पास का रहने वाला एक किसान उसके  पास आया।  बोला थोड़ी सी जमीन है। छह माह बाद बेटी की शादी है। प्रभु  कृपा करो।  साधु  ने कहा   समय है।  पूरी जमीन में  लौकी का बीज लगा दे। जब तैयार हो जाए तो बता देना।किसान ने एक दिन साधु को यह बताया कि  की लौकी की फसल तैयार है। उन्होंने भक्तों से कहा कि कल जब आश्रम आओं तो अपने  सामने की तोड़ी एक− एक  लौकी लेकर  आना ।  सा ही  हुआ किसान की सारी लौकी बिक गई।  भक्तों की लाई लौकी से  इस दिन आश्रम में सब्जी बनी। आश्रमवासी और भक्तों के लौकी खाने से किसान की मदद भी  हो गई। किसी को खबर भी  नही हुई।माना की मोदी साधु नही है।   सन्यासी नही है। किंतु  इनके एक जरा  से प्रयास ने देश को पांच सौ करोड़ का नया  बिजनेस दे दिया। बीस – पच्चीस दिन का  काम और 500  करोड़ का रिटर्न। इसके लिए  नए  संयत्र भी  नहीं लगाने पड़े। ये आलोचक देश के उत्पाद में  हुई  वृद्धि को ये नही देख रहे। जब कुछ बड़ा  होता  है तो   उसमें कुछ कमी भी  रह जाती है।ये कमी तो  हमारी हैं।  हम तिंरगा  अभियान को समझे नही। कहीं फहराता  झंडा रह गया तो  इसमें अभियान का क्या दोषॽ कहीं जमीन पर झंडा  गिरा और किसी ने नहीं उठाया तो  ये  अभियान की तो  गलती नहीं।  ये  तसे हमारी गलती है।

हां  इस अभियान से हम इतना   जरूर समझे कि देश में पिछले कुछ साल में पैदा हुआ राष्ट्र भक्ति का ज्वार अब उतरने वाला  नही है।   और इसे बनाए  रखने की जरूरत है।लोकल फार वोकल का असर ये है कि देश के नेतृत्व  ने कुछ नही कहा।  लोकल फार वोकल के प्रभाव के कारण गणेश  चतुर्थी  उत्सव के अवसर पर चीन से एक भी मूर्ति भारत में नहीं आई। कारोबारी संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट)  प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष देशभर में भगवान गणेश की 20 करोड़ से ज्यादा मूर्तियां खरीदी जाती हैं इससे अनुमानित 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यापार होता है। पिछले दो साल से देशभर में गणपति की इको-फ्रेंडली मूर्तियों को स्थापित करने का चलन तेजी से बढ़ा है। इससे पहले चीन से बड़े पैमाने पर भगवान गणेश की प्लास्टर ऑफ पेरिसस्टोनमार्बल तथा अन्य सामानों से बनी मूर्तियों का आयात होता था। सस्ती होने के कारण चीन से इन प्रतिमाओं का आयात होता थालेकिन पिछले दो साल में कैट के चीनी वस्तुओं के बहिष्कार अभियान के चलते चीन से भगवान गणेश की मूर्तियों का आयात बंद हो गया । इसकी जगह पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियों को स्थापित करने का चलन बढ़ा है।देश का खुद का व्यापार बढ़ा  है।इको फ्रैंडली मूर्ति अपने यहां ही तैयार होकर  बिक रही हैं, इसे देखिए । जानिए और मानिए कि महात्मा गांधी का स्वदेशी का सपना तेजी से पूरा  हो  रहा है।इसीलिए कहा गया   है  कि  अच्छा  देखिए। अच्छा सोचिए। किसी कार्य का काला  पक्ष    मत देखिए।उसमें कुछ अच्छा भी  होगा। उसके उज्जवल पक्ष को  देखिए ,समझिए। जानिए।

अशोक मधुप

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