तार्किक नही हैं ट्रेक्टर –ट्राली− डंपर में पैसेंजर बैठाने पर रोक

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उत्तर प्रदेश में उन्नाव में एक ट्रैक्टर −ट्राली पलट जाने से 26 लोगों की मौत हो गई ! दस लोग घायल हुए। ये सब एक ट्रेक्टर −ट्राली से  मुंडन संस्कार करके लौट रहे थे। घटना के बाद  उत्तर प्रदेश सरकार ने   ट्रेक्टर ट्राली,डंपर में बैठकर सफर करने  पर रोक लगादी । प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश   दिया कि ट्रेक्टर ट्राली −डंपर आदि में  सवारी बैठाने के खिलाफ अभियान चलाया जाए। साथ ही  ट्रैक्टर , डंपर आदि में सवारी ढोने पर दस हजार रूपया जुर्माना वसूला   जाए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  का ये आदेश  सुनने  में अच्छा लगता  है, प्रेक्टिकल में नहीं।  क्योंकि आम किसान और गांव में  लोगों के लिए छोटे-मोटे कार्यक्रमों में आने −जाने का सस्ता और सरल परिवहन ट्रेक्टर ट्राली ही है।उत्तर प्रदेश में नही बल्कि पूरे देश में ग्रामवासी किसान छोटे− मोटे कार्यक्रम, मेले −अंतिम संस्कार में आने−जाने के लिए  ट्रेक्टर− ट्राली  का ही प्रयोग करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का निर्णय प्रैक्टिकल नहीं लगता। इस निर्णय से गांव की जनता −किसान और  पुलिस में  टकराव होगा। विवाद  बढ़ेंगे।सरकार के प्रति  नाराजगी ही बढ़ेगी।इस दुर्घटना का कारण उत्तर प्रदेश सरकार  और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ   जी ने ट्रैक्टर ट्रॉली में सवारी ढोना  मान लिया।  जबकि इस घटना का कारण ट्रैक्टर −ट्राली में सवारी ढोना  नहीं, बल्कि चालक का शराब पीकर ट्रैक्टर चलाना और ट्रेक्टर –ट्राली दौड़ाना है।

 उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के कोरवा  गांव के राजू के बेटे का शनिवार को मुंडन था। मुंडन उन्नाव के चंद्रिका   देवी मंदिर पर होना था। मुंडन  के लिए ट्रेक्टर −ट्राली में सवार करीब 50 ग्रामवासी चंद्रिका देवी मंदिर के लिए निकले। राजू खुद ट्रेक्टर  चला  रहा था। शाम को  मुंडन कराकर वापस  चले।ट्राली में  बैठने वालों  ने बताया कि मंदिर से निकलते ही ट्राली में   सवार ग्रामवासियों शराब के ठेके पर ट्रेक्टर  ट्राली रोक ली।ट्राली में सवार महिलाओं के मना  करने के बाद भी  उन्होंने शराब पी । दरअस्ल  मुंडन  संस्कार खुशी का  अवसर माना  जाता  है।ऐसे अवसर पर देहात में पुरूषों का  शराब  पीना आम  बात  है।यहां  अन्यों के अलावा  राजू ने खुद शराब पी।शराब पीने के बाद  उसी ने ट्रेक्टर का स्टेयरिंग संभाला।  बताया जाता है कि उसने ट्रेक्टर दौड़ाना  शुरू कर दिया। गांव से  चार किलो मीटर दूर अनियंत्रित हुए  ट्रेक्टर  की ट्राली सड़क की  पुलिया के नीचे  भरे पानी में पलट गई।ज्यादा मौत होने का कारण है कि ट्राली में  सवार गांव वाले ट्राली के नीचे दब जाना और उसके नीचे से न निकल  पाना है।

देश  ने आजादी के 75 साल में बहुत  तरक्की की।  गांव तक सड़कें  बन  गईं। कार पंहुच गईं। किंतु आज भी गांव में आने −जाने का सरल  साधन ट्रेक्टर −ट्राली ही है। गांव में मौत होने पर मिलने  वाले  अपने  ट्रेक्टर ट्राली लेकर मृतक के परिजनों के पास आ जाते हैं। यहीं से  ये शव को लेकर दाह संस्कार के लिए  पवित्र  नदियों  तक आते− जाते  हैं। अंतिम संस्कार के शव ट्रकों से ले जाना और ट्रकों से शव के साथा जाना  आम  है।ट्रकों से यात्री  ढोने पर आज भी  रोक है।  चौराहों पर पुलिस शव के साथ ट्रक  में जाते  व्यक्ति देखकर उन्हें नजर अंदाज कर देती है।  नदियों के किनारे लगने  वाले  मेलों के लिए भी यही होता  है। ट्रेक्टर –ट्राली  स्वामी अपने परिवार के साथ  परिचितों के परिवार को भी अपनी ट्रेक्टर –ट्राली  से  मेले  ले जाता  है।

अगले  माह नंवबर में कार्तिक पूर्णिमा  के मेले लगेंगे। ये  पश्चिम उत्तर प्रदेश  का बड़ा  पर्व होता है। लाखों −करोड़ो श्रद्धालु   इन मेलों में जाकर पवित्र नदियों में स्नान  कर पूजन करते  हैं। इन मेलों में ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व 80  से  90  प्रतिशत तक होता  है।  ये सब अपने− अपने ट्रेक्टर –ट्राली  से मेले जाते  हैं।   परिचित −परिवारजनों को अपने साथ ले जाते  हैं।  ट्रक स्वामी   अपने और मिलने   वालों के परिवार को स्नान के लिए अपने− अपने ट्रक से ले जाते  हैं।  ये परंपरा  पुरानी है। ट्रेक्टर –ट्राली  से पहले घोड़ा − तांगा , बैलगाड़ी इस्तमाल होती थी।  अब  गांव   में ट्रेक्टर –ट्राली  पंहुच गए।     

आज भी हालत यह है कि देहात के कई  नगरों के लिए  दिन छिपने के बाद से आने −जाने वालों को बसें  नही मिलती। दिन छिपने के बाद यहां  जाने के लिए गांव जाने वाले ट्रेक्टर –ट्रेक्टर− ट्राली ,  डंपर  और ट्रक ही काम आते  है। यदि ये  गांव  जाने वाले व्यक्तियों  को न ले जाएं तो वे पूरी रात सड़क किनारे बैठे रहेंगे।उन्हें गांव के लिए वाहन नही मिलेगा।यहीं हालत सवेरे गांव से आने के लिए  होती है।

गांव तक कार पंहुची किंतु यह चार −पांच −छह यात्री ले जाने तक ही सीमित है।इससे  ज्यादा व्यक्तियों के आने −जाने के लिए  ट्रेक्टर−ट्राली ही सहारा  है।  अंतिम संस्कार, जिस्टोन,  मेले ,भात नौतने  आदि में आने −जाने के लिए  ट्रेक्टर− ट्राली ही प्रायः काम  आता है।  सस्ता भी है।  सरल भी है। गांव में इसे  चलाने वाले भी सरलता  से मिल जाते  हैं।इन कार्यों के लिए बस आदि करना मंहगा  पड़ता  है।परेशानी कर है।  यदि देश के सभी मेलों ,जिस्टोन ,अंतिम संस्कार में यात्री  वाहन ले जाए जाने लगेंगे तो सड़को पर बसें  नही मिलेगीं।

होना   यह  चाहिए कि दुर्घटना के कारण  खोज जाएं।उन्हें रोकने के लिए कार्य  होना  चाहिए। चोट के ठीक करने के लिए  घाव  धोने का प्रयास होना  चाहिए,  पट्टी धोने का नहीं।  ट्रेक्टर −ट्राली   पहले भी  दुर्घटनाग्रस्त  होती रही हैं किंतु  इतनी मौत नही हुई। इसमें भी ज्यादा मौत का कारण ट्राली का गहरे पानी में पलट जाना  और उसमें बैठने वालों का  ट्राली के नीचे दबा रहना  है। कई  बार होता यह है  कि आसपास के ट्रेक्टर  चालक आते − जाते आपस में ट्रेक्टर दौड़ाने लगते  हैं। मेलों में आने जाने से पहले शराब  पी लेते हैं।  इससे ये ट्रेक्टर पर कईबार नियंत्रण खो बैठते हैं और दुर्घटनाएं  हो जाती हैं।     

दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं में 11 प्रतिशत  मौतें भारत में होती हैं । इन मौत का कारण तेज रफ्तार , लापरवाही, नींद और नशे में गाड़ी चलाना है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट से भी यह बात साबित होती है। पिछले साल ओवरस्पीडिंग के कारण 87,050 और केयरलेस ड्राइविंग के कारण 42,853 लोगों की जान चली गई। रिपोर्ट से और कई चौंकाने वाली बातों का खुलासा होता है। मसलन, सबसे अधिक 38 प्रतिशत सड़क हादसे दोपहर तीन से रात नौ बजे के बीच होते हैं।

सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के चीफ साइंटिस्ट वेलमुर्गन सेनाथिपति इन वजहों की बारीकी बताते हैं। वे कहते हैं, “भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। यहां दोपहर में खाने के बाद लोगों को सुस्ती और नींद आती है। हाइवे पर हल्की झपकी भी बड़े हादसे का रूप ले सकती है। शाम को शराब पीकर गाड़ी चलाना भी एक समस्या है। सेनाथिपति के अनुसार दिन ढलने और पूरी तरह रात होने के बीच हाइवे पर रोशनी कम होती है, यह भी हादसे की एक वजह है।”

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में शाम छह से नौ बजे के बीच 19.9  प्रतिशत  हादसे हुए। वहीं 17.6 प्रतिशत  दुर्घटनाएं दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक और 15.5  प्रतिशत  दुर्घटनाएं दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक हुईं। कुल 4,03,116 हादसों में 59.7  प्रतिशत  हादसे (2,40,828) तेज रफ्तार और लापरवाही के कारण हुए।   तेज  रफतार की वजह से 87,050 लोगों की जान चली गई और 2,28,274 घायल हुए। खतरनाक तरीके से वाहन चलाने और ओवरटेकिंग के कारण 1,03,629 हादसे हुए। इनमें 42,853 लोगों की जान गई और 91,893 को चोट आई।

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच सालों में ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से करीब 40 हजार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। यह संख्या हर साल बढ़ रही है। वर्ष 2016 में 4976, 2017 में 8526, 2018 में 9039 और 2019 में 10522 दुर्घटनाएं मोबाइल के कारण हुईं। साल 2020 अपवाद है जब 6753 दुर्घटनाएं हुई थीं, हालांकि उस साल कोरोना का लॉकडाउन भी था। विशेषज्ञों के अनुसार मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना हल्के नशे में गाड़ी चलाने से ज्यादा घातक हो सकता है। मोबाइल पर बात करने के दौरान व्यक्ति का रिएक्शन टाइम बढ़ जाता है और वह नियंत्रण खो बैठता है।

किसान अपने कार्य के लिए लेबर आदि लाने – ले जाने के लिए ट्रेक्टर− ट्राली  का इस्तमाल करते हैं। किसान संगठनों के कार्यक्रम में किसान आने− आने के लिए  ट्रेक्टर− ट्राली  का इस्तमाल करते  आए है।  ट्रेक्टर− ट्राली ग्रामीण  परिवेश का यातायात का सरल और सुगम साधन  है। जाते ट्रेक्टर  पर सड़क  किनारे खड़ा  व्यक्ति बैठ जाए,  ट्रेक्टर स्वामी   कुछ भी नही कहता। सड़क किनारे वाहन के इंतजार में खड़े व्यक्तियों को वह ट्रेक्टर− ट्राली  रोक कर खुद बैठा लेता है।किराया आदि लेने का तो  सवाल ही नहीं।    

उत्तर प्रदेश ही नही आपितु अन्य प्रदेशों   का राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)के आंकड़ो में आए दुर्घटना के कारण  पर रोक के लिए काम करना   चाहिए ।ट्रेक्टर− ट्राली डंपर  और ट्रकों में यात्री बैठाने  पर रोक लगाने से काम नही चलेंगा। ये सरासर अनुचित है।नया  विवाद उत्पन्न  करने वाला है।  सरकार के विरोध  का किसान नेताओं को   एक और मुद्दा मिल  जाएगा।

अशोक मधुप

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