विश्व भर में आज जहां श्रमिको लिये बनाये गये इस खास दिन को त्यौहार की तरह मनाया गया, वहीं गरीबी और बेबसी के आगे मजबूर तमाम मजदूर आज भी आग उगलती गर्मी में दो वक्त की रोटी के लिये जद्दो जहद करते नज़र आये, पढ़ाई छोड़कर ऐसे भी मजूदर देखने को मिले जो बाल मजदूरी करके अपने परिवार को पेट पालने को मजबूर है वैसे तो अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की षुरूआत 1886 में ही हो गई लेकिन गरीबी की तपती आग में झुलसे रहे कई मजदूरो को आज भी इस दिन के मायने का इल्म तक नही, बिजनौर के मंडावली इलाके में भयकंर गर्मी के बावजूद भी मजदूर पापी पेट के लिये मजदूरी करते नज़र आये, उम्र के आखिरी पड़ाव तक मजदूरी करने को मजबूर लोगो से बाल मजदूरी कर अपने परिवार को पालने वाले छोटे छोटे बच्चे भी कड़ी धूप में काम काज करते नज़र आये