उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे लगभग आ गए। जनता ने प्रदेश की भाजपा और उसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विश्वास दिखाया। भाजपा ने यहां अपने बूते पर ही पूर्ण बहुमत से 51 सीट ज्यादा 255 सीट कब्जा ली। सपा के अखिलेश यादव द्वारा बनाया गया गठबंधन दूसरे नंबर पर बड़ा दल जरूर बन गया। यहां आप और ओबेसी साहब की एआईएमआईएम अपना खाता भी नही खोल सकीं। चार बार मायावती को मुख्य मंत्री बनाने वाली बसपा एक सीट तक सिमट गई।बसपा कांग्रेस से भी कमजोर हालत में रही।कांग्रेस को पूरी शक्ति लगाने के बाद भी दो सीट पर सब्र करना पड़ा।
भाजपा ने 57 सीट गंवाई। ये बड़ा नुकसान है किंतु यह भी बड़ी बात है कि इतने विरोध के बावजूद वह बहुमत 204 से बहुत आगे 255 सीट पर कब्जा जमा सकी।
सपा गठबंधन को छोटे मोटे दलों को एक करने का लाभ मिला। इससे वोट का बंटवारा रूका।मुस्लिम वोट एक मुश्त उसे पड़ा। पिछली बार यादव वोट भाजपा और सपा में बंट गया था किंतु इस बार वह एक मुश्त सपा को गया।
किसान आंदोलन की बात करे तो इसका मामूली सा प्रभाव पड़ा। किसान आंदोलन का सबसे बड़ा प्रभाव लखीमपुर खीरी में था। यहां प्रदर्शन करते केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र के बेटे की कार से चार किसान कुचल कर मरे थे।इस मामले में नौ मौत हुई थीं।यहां घटना के आरोपी बेटे के पिता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र को हटाने का आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन का प्रभाव इतना था कि भाजपा के प्रत्याशी अपने −अपने क्षेत्र में प्रचार के लिए ही नही जा सके। किसान आंदोलन को लेकर उम्मीद थी कि यहां भारतीय जनता पार्टी को बड़ा नुकसान होगा। जहां प्रत्याशी प्रचार को ही न जा सके हों , उनके विरोध का स्तर समझा जा सकता है।
लखीमपुर की जनता से सभी आठ सीटों पर भाजपा को विजय देकर किसान आंदोलन की सच्चाई बता दी। ये बता दिया कि इस आंदोलन और आंदोलन के नाम पर अराजकता को वह पंसद नही करते।वोट से जनता ने इस आंदोलन पर बड़ी चोट की है। यहां की जनता ने इस आंदोलन पर वोट की चोट करके सच्चाई बतादी। ये भी बता दिया कि वह इसका विरोध करती है।
आप पार्टी उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल में अपना खाता भी नहीं खो सकी , जबकि उसने 300 यूनिट फ्री बिजली और परिवार के एक सदस्य को रोजगार देने जैसे दावे किए थे। यहीं हाल आबेसी साहब की पार्टी एआईएमआईएम का रहा।पिछली बार बसपा के पास 19 सीट थीं। अबकि बार उसे एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा। चुनाव ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि बसपा का दलित वोट भाजपा की ओर बढ़ा है।
पिछली बार योगी आदित्यनाथ ने कई मिथक तोड़े। नोयडा और बिजनौर मुख्यमंत्री इसलिए नही आते थे, कि माना जाता है कि जो मुख्यमंत्री यहां आता है, वह दुबारा मुख्यमंत्री नही बनता। योगी आदित्यनाथ बिजनौर तो गए ही, 19 बार नोयड़ा आए।श्राद्ध में शुभ कार्य नही किया जाता, किंतु उन्होंने श्राद्ध में बहुत सारी योजनाओं का शुभारंभ किया।
भाजपा को अपनी नीति ,अपनी योजनाओं का लाभ मिला। किंतु निरंकुश प्रशासन के रवैये का उसे नुकसान हुआ। योगी जी ईमारदार रहे।किंतु प्रशासनिक अमला पहले जैसा ही रहा।इतना जरूर हुआ कि जो काम पहले एक हजार रूपये में होता था, वह ईमानदार सरकार के नाम पर 20 हजार में हुआ। कई गुना पैसा ज्यादा देने के बाद भी बहुत चक्कर काटने पड़े। कोरोना काल में और अन्य सरकार की खरीद में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। विधायक और सांसदों की प्रशासन में सुनवाई नहीं हुई। भाजपा का कार्यकर्ता और वोटर निराश रहा।इसी वजह से हार जीत का अतंर पिछली बार के मुकाबले घटा।
भाजपा की यह जीत योगी आदत्यनाथ की जीत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास है,उनकी नीतियों और नेतृत्व की जीत है, वरन काफी प्रत्याशी का पिछले पांच साल का आचरण वोट देने योग्य नहीं रहा।इसके बावजूद जनता ने भाजपा को वोट दिया। वोट योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मिला।
इस बार जनता ने योगी जी को दुबारा मुख्यमंत्री बनाया तो मुख्यमंत्री पद के काफी समय से दावेदारी करने वाले ,कई बार योगी आदित्यनाथ को लेकर नाराजगी जताने वाले उपमुख्यमंत्री रहे केशव प्रसाद मौर्य को हराकर बता दिया कि वह योगी आदित्यनाथ से लोकप्रियता में बहुत पीछे हैं। योगी आदित्यनाथ को जनता ने एक लाख के आसपास वोट से इस बार विजयी कर भेजा है।
प्रदेश सरकार दुबारा बन कर आई है तो इस बार उसके पास नौकरी में भ्रषटाचार रोकने की बड़ी चुनौती है। प्रतियोगी परीक्षा के पेपर आउट होना अब तक आम है। इस पर रोक लगाने के तुरंत उपाए करने होंगे। प्रशासन स्तर पर भ्रषटाचार को चाबुक चलाकर नियंत्रण करना होगा। पिछले कार्यकाल के बारे में आरोप लगता रहा है कि विकास गोरखपुर का हुआ या पूरब का। देखना होगा कि विकास समान रूप से हो, बहुत से जनपद में विकास के नाम पर कुछ भी नहीं, वहां भी रोजगार के द्वार खोलने होंगे।
अशोक मधुप