अच्छी पहल है लद्दाख सीमा से आंशिक सेना  वापसी  

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लद्दाख  सीमा  से की  अच्छी खबर है।खबर है कि गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स PP-15 के क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित और नियोजित तरीके से पीछे हटना  शुरू कर दिया है। भारत-चीन की ओर से संयुक्त बयान में ये जानकारी दी गई। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी आम सहमति के अनुसारगोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) के क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित और नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है। इससे सीमावर्ती क्षेत्रों में शांतिपूर्ण माहौल बनाने में मदद मिलेगी।

भारत और  चीन  का सेना हटाने का  निर्णय बहुत अच्छा है।किंतु  इसे  ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए। जबकि चीन की ओर से सा  होता  नही। चीन अपनी बात पर प्रायः  टिकता  नही।  वह एक  जगह समस्या खत्म करता है। दूसरी जगह नया मोर्चा शुरू कर देता है।
  बताया गया है कि इस बार सेना  हटाने का  यह निर्णय  16वें दौर की भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की बैठक 17 जुलाई को  हुई बैठक के बाद हुआ। भारत की तरफ चुशुल-मोल्दो सीमा मिलन स्थल पर ये  बैठक हुई थी। इसमें दोनों पक्ष पश्चिमी क्षेत्र में जमीन पर सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने पर सहमत हुए थे। इस दौरान हॉट स्प्रिंग क्षेत्र के पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 से सैनिकों की वापसी पर सहमति बनी थी। 16वें दौर की सैन्य वार्ता करीब साढ़े बारह घंटे तक चली थी। इस दौरान भारत ने फिर से चीन पर दबाव डाला कि वह पूर्वी लद्दाख के विवाद वाले क्षेत्रों से सेना पूरी तरह पीछे हटाए।

सेना के  पीछे हटने के बारे में बताया कुछ भी  जा रहा हो किंतु   सच्चाई  यह है कि चीन सेना हटाने में इसलिए  सहमत हुआ क्योंकि 15-16 सितंबर को  उज्बेकिस्तान  में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन से  है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल होंगे। चीन को लगा  कि इस तनावपूर्ण माहौल में बैठक की कामयाबी की उम्मीद नही की जा सकती।भारत इस तरह के मंचों पर चीन की गलत  हरकतों से पहले  ही दुनिया को अवगत कराता रहा है।यदि यह बैठक न होती तो

चीन शायद कभी  भी अपनी हरकत से बाज न आता। उसकी सेनाएं  से  ही तैनात रहतीं, जैसी थीं।सा  ही डोकलाम विवाद के समय हुआ था।  तीन माह से भारत और चीन की सेना यहां आमने −सामने थीं। चीन यहां से सड़क बनाना  चाहता था। भारत इस बात पर बजिद था कि वह सड़क नही बनने  देगा।   भारतीय  सैनिकों ने  चीन के सड़क बनाने  के उपकरण ठेल कर नीचे  गिरा  दिए थे। वहां भी  तीन महीने तक हालत नाजुक बने रहे।  दोनों देशों की सेनाएं  आमने −सामने  रहीं।  चीन में ब्रिक्स  देशों का सम्मेलन होना था।चीन में होने वाले   ब्रिक्स सम्मेलन में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को  जाना  था। चीन को डर था कि उसके रवैये के कारण यदि मोदी ने बैठक में शामिल होने से इन्कार कर दिया। तो ये  बैठक कामयाब नहीं होगी।इसकी सारी जिम्मेदारी उसके सर डाल दी जाएगी। ब्रिक  देशों की मीटिंग के लिए उसने विवाद को निपटाने में रूचि ली।  सा  ही इस बार संघाई शिखर सम्मेलन की बैठक के कारण  हुआ है।

ब्रिक  देशों की मीटिंग के बाद मई  2020 में  चीन ने भारत −लददाख  सीमा  पर विवाद खड़ा कर दिया। सा ही मई 2020 में  दोनों देशों की सेनाओं के बीच गतिरोध बढ़ा था ।तब से भारत ने  अपने सैनिकों को चीन के सैनिकों को पैट्रोलिंग पॉइंट 15 के पास  उनके सामने  तैनात किया गया है। कई  माह पूर्व  हुए समझाते भारत और चीन ने पैंगोंग त्सो लेक के दोनों किनारों से सैनिकों को हटा भी चुके हैं। 
दरअस्ल   वह इस तरह के विवाद खड़े करके  चीन लाभ उठाने का आदि  रहा है।   वह विवाद खड़ा करके सामने के देश को डराने के लिए अपनी सेना  तैनात कर देता है।  सा करने वह अपनी साइड के उस क्षेत्र में निर्माण  करने लगता  है, जो   विवादास्पाद है।  जबकि सामने के देश के उसके अपने क्षेत्र  में निर्माण करने पर आपत्ति करता रहता  है।  

एक बात और अभी सिर्फ गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) से ही सेना हटेगी,    पूरे  लद्दाख बार्डर से सेना वापिस नही होगी। इसी लिए भारत का कहना भी है कि वह डैपसांग− डैमचक क्षेत्र से भी सेना वापसी के लिए  चीन पर दबाव बनाता रहेगा।

फिर भी जितनी  जगह से  सेना  हटाने का निर्णय  हुआ है। अच्छा   हुआ है। जो भी है बहुत अच्छा है। किंतु चीन पर यकीन नही किया जा सकता।  समझौतों के प्रति वह कभी  ईमानदार नही रहा।लद्दाख  सीमा  से सेना  की पूरी वापसी होनी  जरूरी है। हालाकि डोकलाम विवाद के बाद चीन द्वारा  लद्दाख  सीमा पर दबंगई  दिखाने की उसकी गीदड़ भभकी से अब कोई डरता नहीं है।डोकलाम के बाद  उसने लद्दाख  सीमा  पर लगभग सवा दो साल सेना तैनात  रखी किंतु   उसका कुछ लाभ नही लगा।सा  ही ताइवान

क्षेत्र में हुआ। अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान  यात्रा के  बाद    चीन
खूब भड़का।   उसने ताइवान को डराने के लिए उसकी सीमा के पास  युद्धाभ्यास   शुरू कर दिया। ताइवान की सीमा में नही जा  सका।  एक तरह से  कुश्ती के मैदान के बाहर खूब उछलकूद करता  रहा।  उसके  इरादों से लगता था कि अभ्यास के नाम पर वह किसी भी समय यूक्रेन में घुंसी रूसी सेना की तरह अपनी   सेना भी  ताइवान में घुंसा देगा, पर 
सा हुआ नहीं।अमेरिकी के जंगी पोतों  के  ताइवान क्षेत्र में आने के बाद उसने दंगल के मैदान के बाहर की उछलकूद को भी विराम देने में भलाई समझी। इस बीच ताइवान ने  अपनी सीमा के आए  चीनी द्रोण को मार गिराया।  जरा− जरा सी बात पर धमकी देने वाला और अकड़ दिखाने वाला चीन अपने  द्रोण को  मार गिराए जाने पर    कुछ नही बोला।  इतनी बड़ी घटना पर उसकी प्रतिक्रिया नही आई।जबकि वह दुनिया  की आज  दूसरी बड़ी शक्ति है और ताइवान उसके मुकाबले कुछ भी   नही।

 चीन दिखावा कुछ भी करे किंतु लगता है कि उसके आंतरिक हालात ठीक नही है। दुनिया ने जहां कोरोना पर लगभग  काबू पा लिया, वहीं चीन में अभी  भी  कई  जगह लाक डाउन लगा है। नेपाल में दशहरे का त्‍यौहार दाशिन के नाम से मनाया जाता है। यह नेपाल का सबसे बड़ा त्‍यौहार है । इस मौके पर लोग जमकर खरीददारी करते हैं। चीन ने उन ट्रकों की एंट्री को नेपाल में दाखिल होने से रोक दिया जिनमें इन त्योहार में बिक्री के  लिए सामान  चीन से ही आ रहा था। ट्रकों पर कपड़ेइलेक्‍ट्रॉनिक डिवाइसेजफल और दूसरा सामान लदा है। अब इन ट्रकों को नेपाल में ही दाखिल होने की मंजूरी नहीं मिल रही है।चीन की सरकार ने आदेश दिया है कि सामान लेकर आने वाले वाहनों को ल्‍हासा में एंट्री नहीं होगी। तिब्‍बत में जारी कोरोना वायरस संक्रमण के चलते चीन ने यहां पर लॉकडाउन घोषित कर दिया है। बताया जा रहा है कि 200 से ज्‍यादा कंटेनर्स को केरॉन्‍ग में और करीब 100 कंटेनर्स को खासा में रोका गया है ।दूसरी और चीन की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि बैंक जमाकर्ताओं  के धन का भुगतान नही कर पा रहे। जमाकर्ताओं की भीड़ और उसके हमले राकने के लिए बैंक  के आसपास चीनी को सेना के टैंक तैनात  करने पड़े है।   हाल में  चीन में आई बाढ़ से भी   उसके यहां जानमाल का  भारी नुकसान हुआ है। लगता है कि आंतरिक हालात से जूझ रहा चीन गीदड़ धमकी तो  दे  रहा है, किंतु युद्ध करते  डर रहा  है।  

वैसे अच्छा भी  है युद्ध न हो।युद्ध  जितना टल जाए , बेहतर है।युद्ध से जानमाल का बहुत नुकसान होता है। युद्ध में शामिल होने  वाले देश  विकास में बहुत पीछे चले जातें हैं।  

अशोक मधुप