अखिलेश से दूर होने लगी पिछले चुनाव में जुडी मेंढकों की टीम

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सपा प्रमुख  अखिलेश यादव के साथ उत्तर प्रदेश के पिछले   सभा चुनाव में  एकजुट हुई मेंढकों की टीम उछल कर धीरे − धीरे गठबंधन से भागने लगी।  विधान सभा चुनाव में अखिलेश से जुड़ने  वाले मेढ़कों और उनकी छोटी −छोटी टीम के नेताओं को उम्मीद थी, कि प्रदेश में भाजपा परास्त होगी।  प्रदेश में अखिलेश  यादव के नेतृत्व में  सरकार बनेगी। वे  सत्ता सुख का आनन्द   उठाएगें। भाजपा विरोधी मीडिया   इनके सपनों  को यह कह कर हवा दे रही थी कि भाजपा  बुरी तरह  परास्त  होगी।कुछ तथा−कथित  किसान नेता  भी   इन सबको सत्ता सुखके सपने दिखा रहे थे, किंतु   हुआ ऐसा नहीं।  सरकार बनी  नही ।  सत्ता सुख के लिए एकत्र हुए नेताओं को  कोई लाभ  होता नजर नही आया। आखिर ये कब तक एकजुट रहते। धीरे− धीरे  गठबंधन में शामिल मेंढक और उनके नेता   उछल −उछल कर अखिलेश  से दूर होने लगे।

दरअस्ल देश  के होने  वाले अधिकतर गठबंधन वैचारिक नही होते। ये सत्ताधारी दल को हराने ,सत्ता पर कब्जा  करने के लिए और सत्ता − सुख उठाने के लिए होते  हैं। गठबंधन में शामिल सभी   दलों के अपने स्वार्थ और उसके नेताओं के अपने  हित होते हैं।  हित पूरे करने के लिए ये  अपने  ही साथियों का पीछे  धकेल कर अपना  लाभ  उठाने में लग  जाते  हैं।  इसलिए ये गठबंधन ज्यादा नही चल पाते।  ऐसा ही इस गठबंधन  में हुआ।    

उत्तर प्रदेश  पिछले  विधान सभा चुनाव  से पूर्व विपक्ष की एकता के नाम पर शिवपाल यादव  अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ आ गए। किंतु सम्मान न मिलने से क्षुब्ध रहे।  टिकट  वितरण  में हुई   उपेक्षा से वे  चुनाव के दौरान ही  खिन्न   नजर आए। उन्हें तो अखिलेश यादव ने टिकट दिया किंतु   गठबंधन में शामिल हुए उनके   दल के किसी नेता को टिकट नही दिया  गया।  वह   इसी को लेकर तभी  से  अपनी नाराजगी  जाहिर  करते रहे थे।  चुनाव प्रचार में भी उनकी उपेक्षा   नजर आई।  अखिलेश यादव के प्रचार रथ का  उस  समय एक फोटो जारी किया गया था। इसमें  अखिलेश यादव और  उनके पिता  मुलायम सिंह कुर्सी पर बैठे हैं।शिवपाल यादव को बैठने के लिए जगह नही मिली और वे रथ में इन

दोनों के पीछे खड़े होकर सफर कर रहें हैं।

चुनाव के खत्म होने पर भी सम्मान न मिलने  और  अपने को  उपेक्षित देख  शिवपाल यादव ने  कहना शुरू कर दिया कि उसे  गलती हुई  है।   उन्हें गठबंधन में  शामिल नही होना  चाहिए था। धीरे −धीरे  वे  अलग हो गए1

  सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश  राजभर भाजपा  में रहते  भाजपा  की आलोचना  करते थे। हाल के चुनाव  में   वे  अपनी टीम को  लेकर सपा गठबंधन में शामिल हो गए।   अखिलेश यादव से जुड़ने  से पहले उन्होंने एआईएमआईएम (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से गठबंधन किया था।  उनके साथ काफी घूमे भी थे।ओबेसी से दोस्ती के दौरान ये भाजपा के संपर्क में भी रहे। कहीं   दाल न गलती देख अखिलेश   यादव से जुड़ गए।अखिलेश ने इनके अहम की संतुष्ठि के लिए बहुत कुछ किया।  पूरा सम्मान दिया ।  किंतु  चुनाव के बाद ओमप्रकाश  राजभर   सार्वजनिक मंच से अपनी नाराजगी जाहिर करनी शुरू की। कब तक बर्दाश्त होता।  मजबूरन  अखिलेश  यादव को  कहना  पड़ा कि उन्हें )राजभर को) लगता है  कि उपेक्षा हो रही है तो  उन्हें रोका किसने   हैं, वह जहां  चाहें  चले जाए।

आलोचक   सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश  राजभर  की और से  ही चर्चा आईं  कि वह   बसपा में   जा सकते हैं।उसके तुंरत  बंद  बसपा की और से  प्रतिक्रिया आई  कि बसपा का उन्हें अपने दल में  लेने को कोई   इरादा नही है।  भाजपा ने भी  इसबार  उन्हें कोई  लिफ्ट नही दी।

दरअस्ल     सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश  राजभर  के व्यवहार और   आचरण से सभी  राजनेता वाकिफ  हैं।  वह दल में ही रहकर  उसकी आलोचना करते  रहते हैं।   उनकी कोशिश अपने  को दल में  सर्वोच्च  बताने की रहती है।अब वह अपने दल की टूट  के लिए अखिलेश  यादव को जिम्मेदार ठहराया । हाल में  पत्रकार वार्ता में  कहा भी है कि सपा  के अखिलेश   यादव उनकी पार्टी को  तोड़ने में लगे हुए  हैं।

अखिलेश यादव ने रालोद को  गठबंधन में बनाए  रखने के लिए बड़ी कुर्बानी दी। उन्होंने   दल के किसी सदस्य को   न भेज  रालोद के जंयत   चौधरी को राज्यसभा  में भेजा।  किंतु  अब उसे भी   सुर अलग –अलग  होते  जा रहे हैं।   राजोद के प्रदेशाध्यक्ष रामाशीष  राय  ने अभी   हाल ही में बागपत में घोषणा की कि उनका दल नवंबर में होने  वाले स्थानीय निकाय चुनाव अपने बूते  पर अकेला लड़ेगा।   विधान सभा   सत्र  के पहले दिन भी अखिलेश यादव की सपा  और  रालोद के रास्ते−  अलग −अलग  नजर आए।

सपा प्रमुख ने पहले ही घोषणा की  कि वह    सदन की  कार्रवाई में  भाग  लेने के लिए वे  अपने  विधायकों के साथ पार्टी कार्यालय से  पैदल सदन जाएंगे।  आरोप है कि  उन्होंने   इसके लिए गठबंधन के दल से भी बात  नही की।सपा ने जहां पैदल मार्च  किया।  रास्ते में   पुलिस के रोके जाने पर सडक पर छद्म विधान सभा   लगाई ।वहीं  रालोद के सदस्यों ने सदन की कार्रवाई में हिस्सा  लिया। रालोद  विधायकों ने  सदन में जाने से  पहले   विधान सभा प्रांगण में  लगी  चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा पर धरना दिया।  धरने  के बाद   वे   सदन की कार्यवाही में  शामिल हुए। बाद में  रालोद के विधायक दल के नेता राजपाल    बालियान ने  कहा  कि  हमें  सपाने पैदल मार्च में बुलाया   ही नही बुलाया   होता ,   तो जरूर  जाते। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश  राजभर  भी   सदन में ही रहे।

अभी   स्थानीय निकाय चुनाव में  लगभग दो माह हैं, इससे  पहले ही  उनका जोड़ा   कुनबा बिखर गया। लोकसभा  चुनाव में अभी समय  है,  तब क्या रहेगा,  नही कहा जा सकताॽ

अशोक  मधुप

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